
कभी दिल्ली, हैदराबाद, बुलंदशहर, लखीमपुर खेरी, बलरामपुर तो इस बार हाथरस तो अगली बार कहीं और होगा। एक बार फिर किसी अलग नाम से एक लड़की समाचार की सुर्ख़ियों में नजर आएगी। हर बार बस जगह और नाम बदल जाते हैं लेकिन नहीं बदलती हैं तो यह घिनौनी घटनाएं जो हर बार नए एक्सपेरिमेंट्स के साथ की जाती हैं , जिसकी आड़ में राजनीतिक दल, नेता और मंत्री सियासत करते हुए दिखते हैं या फिर हम किसी चौक-चौराहे पर हाथ में इंसाफ मांगने वाले बैनर थामे नजर आते हैं। किसी पर आरोप लगाकर या प्रोटेस्ट करके हम पूरी कोशिश तो करते हैं कि लड़की को इंसाफ दिलाने की लेकिन क्या अपने आरोपियों को फांसी पर लटकता देखने के लिए वो अब जिन्दा है? सजा तो पहली भी मिली थी कहीं फांसी की तो कहीं एनकाउंटर में मारा गया था क्या उसके बावजूद भी रेप होना बंद हुए? तो जवाब आएगा नहीं। मोमबत्ती जलाने से उसकी जलन ख़त्म कभी नहीं हो सकती जो रेप के बाद उम्रभर उसे बर्दाश्त करनी पड़ती है. हर केस के बाद एक नई हेडलाइंस के साथ खबरें देखने को मिलती हैं तो इस बार दलित लड़की कहकर इस केस म...