कभी दिल्ली, हैदराबाद, बुलंदशहर, लखीमपुर खेरी, बलरामपुर तो इस बार हाथरस तो अगली बार कहीं और होगा। एक बार फिर किसी अलग नाम से एक लड़की समाचार की सुर्ख़ियों में नजर आएगी। हर बार बस जगह और नाम बदल जाते हैं लेकिन नहीं बदलती हैं तो यह घिनौनी घटनाएं जो हर बार नए एक्सपेरिमेंट्स के साथ की जाती हैं , जिसकी आड़ में राजनीतिक दल, नेता और मंत्री सियासत करते हुए दिखते हैं या फिर हम किसी चौक-चौराहे पर हाथ में इंसाफ मांगने वाले बैनर थामे नजर आते हैं। किसी पर आरोप लगाकर या प्रोटेस्ट करके हम पूरी कोशिश तो करते हैं कि लड़की को इंसाफ दिलाने की लेकिन क्या अपने आरोपियों को फांसी पर लटकता देखने के लिए वो अब जिन्दा है? सजा तो पहली भी मिली थी कहीं फांसी की तो कहीं एनकाउंटर में मारा गया था क्या उसके बावजूद भी रेप होना बंद हुए? तो जवाब आएगा नहीं। मोमबत्ती जलाने से उसकी जलन ख़त्म कभी नहीं हो सकती जो रेप के बाद उम्रभर उसे बर्दाश्त करनी पड़ती है. हर केस के बाद एक नई हेडलाइंस के साथ खबरें देखने को मिलती हैं तो इस बार दलित लड़की कहकर इस केस में वजन डाला गया है, वो कोई धर्म, जाती और स्टेटस देखकर रेप नहीं करते उन्हें तो ब
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एक खत- माँ के लिए
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माँ, उम्र के इस दौर में मुझे आज मेरा बचपन याद आ रहा है। जब कभी मै बीमार पड़ती तो दवाई के कड़वा होने की वजह से मैं अक्सर उन्हें छुपा दिया करती थी, पर तुम्हे लगता कि ना जाने तुम्हारी लाडो ठीक क्यों नहीं हो रही? तुम झट से आती और अपने आँचल से मेरी नजर उतार दिया करती थीं। बेशक ये बात जानकर अब तुम्हे मुझ पर गुस्सा तो नहीं आएगा फिर भी एक बेईमान सी नाराजगी जताने का तुम पूरा दिखावा करोगी। स्कूल से आने के बाद मुझे आलू की सब्जी खाना कतई पसंद नहीं आता था, तब मेरी भूख की परवाह करते हुए तुम जल्दी से तड़के वाली दाल और चावल बना दिया करती थीं। हाँ... रखलो अपनी लाड़ली का ख्याल! दीदी और भाई से ये ताने भी अक्सर तुम मेरे लिए सुन लिया करती थीं। मैंने उन तमाम कामों को करने की कोशिश की जो मुझसे आज तक नहीं हो पाए, पर मेरा हौसला बढ़ाने से तुम कभी पीछे नहीं हटी। कदम से कदम मिलाकर मेरे साथ चलना और एग्जाम्स वाली रात मेरे साथ जागते हुए काटना तुम्हे बखूबी आता था। मैं जानती हूं माँ, उस दिन बहुत रोया था तुम्हारा दिल, शायद तुम बिखर भी चुकी होंगी जब मैं अपने सपनों के पीछे भागते हुए, तुम्हे अकेला छोड़कर एक पराए शहर में