
किसी पर आरोप लगाकर या प्रोटेस्ट करके हम पूरी कोशिश तो करते हैं कि लड़की को इंसाफ दिलाने की लेकिन क्या अपने आरोपियों को फांसी पर लटकता देखने के लिए वो अब जिन्दा है? सजा तो पहली भी मिली थी कहीं फांसी की तो कहीं एनकाउंटर में मारा गया था क्या उसके बावजूद भी रेप होना बंद हुए?
तो जवाब आएगा नहीं।
मोमबत्ती जलाने से उसकी जलन ख़त्म कभी नहीं हो सकती जो रेप के बाद उम्रभर उसे बर्दाश्त करनी पड़ती है.
हर केस के बाद एक नई हेडलाइंस के साथ खबरें देखने को मिलती हैं तो इस बार दलित लड़की कहकर इस केस में वजन डाला गया है, वो कोई धर्म, जाती और स्टेटस देखकर रेप नहीं करते उन्हें तो बस अपनी हवस मिटानी है चाहें वो किसी भी उम्र, मजहब और जाति की हो।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानून और एससी-एसटी एक्ट आने के बावजूद भी रेप और शोषण की घटनाएं दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं. कोर्ट के प्रोसेस में सालों बीतने के बाद या तो पीड़िता अपना दम तोड़ देती है या अपने हालात में जीने की मजबूर हो जाती है।
आखिर कब तकहमारे देश में महिलाओं को यूंही यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ेगा?
अबकी बार सिर्फ रेप नहीं हुआ
पहले जीभ काटी
फिर रीढ़ की हड्डी तोड़ी
लड़की की नहीं
मेरी, आपकी और सिस्टम की।
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