एक खत- माँ के लिए

उम्र के इस दौर में मुझे आज मेरा बचपन याद आ रहा है। जब कभी मै बीमार पड़ती तो दवाई के कड़वा होने की वजह से मैं अक्सर उन्हें छुपा दिया करती थी, पर तुम्हे लगता कि ना जाने तुम्हारी लाडो ठीक क्यों नहीं हो रही?
तुम झट से आती और अपने आँचल से मेरी नजर उतार दिया करती थीं।
बेशक ये बात जानकर अब तुम्हे मुझ पर गुस्सा तो नहीं आएगा फिर भी एक बेईमान सी नाराजगी जताने का तुम पूरा दिखावा करोगी।
स्कूल से आने के बाद मुझे आलू की सब्जी खाना कतई पसंद नहीं आता था, तब मेरी भूख की परवाह करते हुए तुम जल्दी से तड़के वाली दाल और चावल बना दिया करती थीं।
हाँ... रखलो अपनी लाड़ली का ख्याल! दीदी और भाई से ये ताने भी अक्सर तुम मेरे लिए सुन लिया करती थीं।
मैंने उन तमाम कामों को करने की कोशिश की जो मुझसे आज तक नहीं हो पाए, पर मेरा हौसला बढ़ाने से तुम कभी पीछे नहीं हटी। कदम से कदम मिलाकर मेरे साथ चलना और एग्जाम्स वाली रात मेरे साथ जागते हुए काटना तुम्हे बखूबी आता था।
मैं जानती हूं माँ, उस दिन बहुत रोया था तुम्हारा दिल, शायद तुम बिखर भी चुकी होंगी जब मैं अपने सपनों के पीछे भागते हुए, तुम्हे अकेला छोड़कर एक पराए शहर में चली आई थी।
तब जाने से तुमने क्यूँ नहीं रोका मुझे? क्यूँ नहीं कहा मेरी लाडो मेरे साथ रहजा, मुझे जरूरत है तेरी।
बस मेरे पीछे मुड़ते ही अपने आंसू बहा दिए थे तुमने।
शाम ढले ऑफिस से आने के बाद यहां कोई नहीं होता ये पूछने के लिए कि कैसा रहा मेरा दिन, पर दूर रहकर भी फ़ोन पर मेरा हाल जानना तुम कभी नहीं भूलती।
तुम रोज पूछती हो, सब है न तेरे पास वहां, कहीं कोई परेशानी तो नहीं। मै भी हां में सिर हिला दिया करती हूं, पर मन में कहीं एक दबी सी आवाज में एक सिसकी निकलती है जो कहती है,
हां मां, सब है तो है यहां, बस सुकून से सिर रखने के लिए तुम्हारी गोद नहीं।
स्कूल से आने के बाद मुझे आलू की सब्जी खाना कतई पसंद नहीं आता था, तब मेरी भूख की परवाह करते हुए तुम जल्दी से तड़के वाली दाल और चावल बना दिया करती थीं।
हाँ... रखलो अपनी लाड़ली का ख्याल! दीदी और भाई से ये ताने भी अक्सर तुम मेरे लिए सुन लिया करती थीं।
मैंने उन तमाम कामों को करने की कोशिश की जो मुझसे आज तक नहीं हो पाए, पर मेरा हौसला बढ़ाने से तुम कभी पीछे नहीं हटी। कदम से कदम मिलाकर मेरे साथ चलना और एग्जाम्स वाली रात मेरे साथ जागते हुए काटना तुम्हे बखूबी आता था।
मैं जानती हूं माँ, उस दिन बहुत रोया था तुम्हारा दिल, शायद तुम बिखर भी चुकी होंगी जब मैं अपने सपनों के पीछे भागते हुए, तुम्हे अकेला छोड़कर एक पराए शहर में चली आई थी।
तब जाने से तुमने क्यूँ नहीं रोका मुझे? क्यूँ नहीं कहा मेरी लाडो मेरे साथ रहजा, मुझे जरूरत है तेरी।
बस मेरे पीछे मुड़ते ही अपने आंसू बहा दिए थे तुमने।
शाम ढले ऑफिस से आने के बाद यहां कोई नहीं होता ये पूछने के लिए कि कैसा रहा मेरा दिन, पर दूर रहकर भी फ़ोन पर मेरा हाल जानना तुम कभी नहीं भूलती।
तुम रोज पूछती हो, सब है न तेरे पास वहां, कहीं कोई परेशानी तो नहीं। मै भी हां में सिर हिला दिया करती हूं, पर मन में कहीं एक दबी सी आवाज में एक सिसकी निकलती है जो कहती है,
हां मां, सब है तो है यहां, बस सुकून से सिर रखने के लिए तुम्हारी गोद नहीं।
बहुत खूबसूरत लिखा है आपने। हर शब्द स्नेह और ममता से लबरेज। 👏
ReplyDelete😘😘😘😘बहुत ख़ूब
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