एक सवाल?

मुझे लिखना पसंद है या यू कहूं मुझे लिखने से मोहब्बत है। मैं हर दफा कुछ नया लिखने की कोशिश करती हूं, कुछ ऐसा जो मेरी ही लेखनी को चुनौती दे सके और मेरे अन्दर छुपे एक कलाकार को जन्म दे सके। पेशे से मैं एक राइटर हूं, पर सच कहूं तो मैं आज भी  खुदको एक राइटर कहने से कतराती हूं। और शायद तब तक कतराती रहूगीं जब तक मेरे लिखे हुए अल्फाज़  लोगो के दिल को छूते हुए उनकी जुबां पर आकर ,ये कहते हुए न ठहर जाए कि वाह क्या खूब लिखा है !
मुझे अक्सर इस सवाल से होकर गुजरना पड़ता है कि मैं क्यूं लिखती हूं?

मेरी कहानियां, मेरी कविताएं और मेरी लिखी हुई शायरियां अक्सर मुझे सवालों के  घेरे में डाल देती हैं।


मैं जब मोहब्बत  पर लिखती हूं तो लोग एक तंज कसते हैं कि मै इश्क कर बैठी हूं, और एक आशिकाना किस्म की शायरा बन गयी हूं।  जबकि मैं अपने किसी लगाव को नहीं, अपनी  नजरों के सामने हो रहे प्यार के अभाव को लिखती हूं। अगर जिंदगी पर लिखूं तो जमाने की नजरे इस कदर देखती हैं कि जाने जिंदगी मुझ पर कितने सितम कर बैठी है, और मैं दुनिया से बेतहाश होकर बेबस हो गयी हूं। 
कभी जो दर्द लिख दूं तो जनाब, पूछिए ही मत जाने कितनी ही नजरों में, मैं कैद हो जाती हूं, बस यही मानकर कि किसी फरेब ने, मुझे अपनी चपेट में ले लिया हो और उस ही की पीड़ा मैं अपने अक्षरों पर निकाल रहीं हूं।
 हां मैं मानती हूं कि इन सवालों की जन्मदाता मैं खुद ही हूं। 
पर एक बात हमेशा याद रखिएगा एक लेखक वो कभी नहीं लिखेगा जो उसके दिल को अच्छा लगता हो, वह हमेशा वही लिखेगा जो आपको पढ़ने में अच्छा लगता हो।
एक कवि कभी अधूरा नहीं होता, अधूरी होती हैं तो बस उसकी कविताएं जो कहीं न कहीं किसी की जिंदगी में कुछ पीछे छूटे हुए को पूरा करती हैं। और अपने निशानों को छोड़कर हर मुमकिन कोशिश करती हैं कि वह उस दौर से निकलकर अपने जीवन में रौशनी की एक नयी किरण बिखेर सके।

मैं क्यू लिखती हूं ये हरगिज जरुरी नही हँ, जरुरी ये है कि, आखिर मैं लिखती क्या हूं।।

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