वो स्त्री है!

वह लड़ रही होती है,अपने अंदर चल रही उन तमाम उलझनों से जिसका जिक्र भी शायद वह किसी से करना पसंद नहीं करती। वह सहम जाती है दुनिया के उन कटाक्षों से जो अंत में सिर्फ यही कहेगें... गलती तो तुम्हारी भी रही होगी। जाने कितने ही नकारात्मक भावनाओं का समन्दर उसके भीतर क्यों न उमड़ रहा हो लेकिन हर चोट की सिरहन को छुपाना वह बखूबी जानती है।
इन सब के बावजूद भी वह कभी खुद को बिखरने नहीं देती। थोड़ा सा साज- श्रृंगार करके अपनी खूबसूरत मुस्कान के पीछे की पीड़ा को कभी जाहिर नहीं होने देती। अनेक रिश्तों के दायरें में उलझी एक स्त्री अपनी जिंदगी के हर किरदार को शिद्दत से निभाती है। अपनो के लिए सोचते-सोचते ही वह कितनी अंधेरी रातें जागकर काट लेती है, उसके आंसूओं की नमी को सिर्फ उसका तकिया ही महसूस कर पाता है। हर सुबह एक नए मुखौटे को पहनकर अपने अस्तित्व को झुठला देती है।
यदि सवाल उठे उसके नारित्व पर तो छोड़ भय इस दुनिया का वह शेरनी की तरह दहाड़ती है और अपने स्वाभिमान को बचाने के लिए लड़ती भी है। उसके स्वतंत्र इरादे और निडरता का लोहा मानकर ये जमाना भी उसके आगे घुटने टेक देता है।
वो कहते है न..
वो स्त्री है, वो कुछ भी कर सकती है।
Wao
ReplyDeleteGreat
ReplyDelete💞💖💗💕💓
ReplyDeleteThank you so much
ReplyDeleteअति उत्तम।
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