आंचल- ममता का


अलसुबह

दिन भर की भाग दौड़ के साथ

चूड़ियों की खनखनाहट के साथ

 शुरू होती कहानी दिनभर के संघर्ष की 

और खत्म होती है देर रात, 

बिस्तर पर टूटकर बिखरने के साथ


कैसे कर लेती हो तुम

 इतना सब कुछ....


रोज़ थोड़ा- थोड़ा बचाकर

टूटे हुए सामान को जोड़कर

तुम बना लेती हो घर अपना

जिसे तुम सहेज कर रखती हो


अपनी तकलीफ को छुपाकर

अपने दर्द को सबकी नजर से बचाकर

होठों पर  मीठी सी मुस्कान बिखेरकर 

पूरे परिवार को अपने आंचल में समेट लेती हो।


कैसे कर लेती हो तुम

इतना सबकुछ....


सबकी ज़रूरत पूरी करते-करते

आखिर क्यों भूल जाती हो तुम

तुम्हारी भी एक जिंदगी है

जिसे तुम्हें जीना है

लोग क्या कहेंगे, इस फ़िक्र को छोड़कर

अपनी दुनिया को खुद रंगों से भरना है।

अब तुम्हें, 

अपने ख्वाबों को भी पूरा करना है 💕


- अदिति गुप्ता

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